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12th class History Important Questions !! History Ncert questions All Board Exam

 




प्रश्न 1. भारत छोड़ो आंदोलन की व्याख्या करें।

उत्तर- भारत छोड़ो आंदोलन ) अगस्त 1912 को शुरू हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व गांधी जी ने किया। कांग्रेस ने 8 अगस्त, 1912 को यह आंदोलन चलाने का प्रस्ताव पास किया और अंग्रेजों को भारत छोड़ देने के लिए ललकारा। इसी आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने "करो या मरो' का नारा दिया था। सारा देश भारत छोड़ो' के नारों से गूंज उठा। अंग्रेजों ने इस आंदोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया। प्रस्ताव पास होने के दूसरे ही दिन सारे नेता बंदी बना लिए गये। परिणामस्वरूप जनता भी भड़क उठी। आंदोलन के नेतृत्वहीन होने के कारण लोगों ने सरकारी दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों तथा डाकघरों को लूटना और जलाना आरंभ कर दिया। सरकार ने अपनी नीति को और भी कठोर कर दिया और असंख्य लोगों को जेलों में डाल दिया। सारा देश एक जेलखाने के समान दिखाई देने लगा। इतने बड़े आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गयी।

प्रश्न 2. सविनय अवज्ञा आंदोलन पर टिप्पणी लिखे।

उत्तर- सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 ई. में शुरू हुआ था। इस आंदोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आंदोलन का आरंभ गांधी जी ने 12 मार्च, 1930 ई. को किया। गांधी जी ने आंदोलन के तहत साबरमती आश्रम से डांडी यात्रा आरंभ की। मार्ग में अनेक लोग उनके साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वह समुद्र तट पर पहुँचे और उन्होंने समुद्र से नमक उठाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद सारे देश में लोगों ने सरकारी कानूनों को भंग करना आरंभ कर दिया। इस आंदोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हजारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गांधी जी को भी बंदी बना लिया गया। यह आंदोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा लोगों ने बड़ी संख्या में इस आंदोलन में भाग लिया।

प्रश्न 3. उदारवादियों की कार्य पद्धति बताइये।

उत्तर- उदारवादी नेता संवैधानिक साधनों में विश्वास रखते थे। वे किसी भी प्रकार का उग्र या क्रान्तिकारी साधन प्रयोग में नहीं लाना चाहते थे। वे अपनी माँगों को मनवाने हेतु प्रार्थना-पत्रों, स्मृति-पत्रों तथा प्रतिनिधि मण्डलों का प्रयोग करना उचित मानते थे। उनकी कार्य पद्धति के विषय में पं० मदन मोहन मालवीय के शब्द यहाँ उद्धृत किए जा सकते हैं कि, “हमें सरकार से बार-बार निवेदन करना चाहिए कि वह हमारी माँगों को स्वीकार करने पर जोर दें।" एक और उदाहरण प्रस्तुत है, “यद्यपि अब तक हमको प्रयत्नों में सफलता नहीं मिली है, हमें सरकार के पास फिर जाना चाहिए और उनसे अपनी प्रार्थना स्वीकार करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।" आलोचकों ने उनकी इस कार्यपद्धति को 'भिक्षावृत्ति' का नाम दिया है।

प्रश्न 4. जिन्ना पर टिप्पणी लिखिये।

उत्तर- जिन्ना आरम्भ में हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। वे प्रारम्भ में कांग्रेस से जुड़े थे। लेकिन धीरे-धीरे उनका रुझान साम्प्रदायिक राजनीति की ओर बढ़ता गया और वे कट्टर साम्प्रदायिक हो गए। उनकी 14 सूत्रीय मांग घोर साम्प्रदायिकता का प्रमाण थी। उन्होंने पाकिस्तान की मांग का परजोर समर्थन किया

और भारत विभाजन में प्रमुख भूमिका निभायी। स्वतंत्र पाकिस्तान के वे प्रशा कायदे आजम बने।

प्रश्न 5.कैबिनेट मिशन योजना के गुण एवं दोष बताइये।

उत्तर- कांग्रेस व लीग को प्रसन्न रखने का प्रयल-मिशन ने दोनों को प्रसन्न रखने के लिए बीच का मार्ग अपनाया। जिन्ना की पाकिस्तान की मार ठकरा दिया क्योंकि उससे साम्प्रदायिक समस्या हल नहीं हो सकती थी। परन्तर ही लीग को प्रसन्न करने के लिए प्रान्तों को अनेक गुपों में संगठित होने की स्वतन्त्रता दी। प्रान्तों को यह स्वतन्त्रता दी गयी कि वे संघ से अलग होकर संविधान स्वयं बना सकते हैं।

2) संविधान सभा का प्रजातीय आधार-कैबिनेट योजना का एक महत्वपूर्ण गुण यह था कि संविधान सभा का निर्माण प्रजातन्त्रीय आधार पर होना था। अल्पसंख्यकों को जनसंख्या के अनुपात से अधिक स्थान प्रदान करने वाले सिद्धान्त को अस्वीकार कर दिया गया था। देशी रियासतों तथा प्रान्तों को उसकी जनसंख्या के आधार पर ही प्रतिनिधित्व दिया गया था।

(3) सीमित साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व-इस योजना द्वारा यद्यपि साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व समाप्त तो नहीं किया गया, फिर भी उसका क्षेत्र बहुत कुछ सौमित कर दिया गया। इस योजना द्वारा केवल तीन निर्वाचन क्षेत्र मान्य हुए। साधारण, मुस्लिम और सिक्ख (केवल पंजाब में) अन्य सब वर्गों-योरोपियन, एंग्लो इण्डियन, ईसाई, हरिजन, मजदूर स्त्रियों के पृथक प्रतिनिधित्व को समाप्त कर दिया गया।

(4) देशी रियासतों के लोगों के अधिकारों को मान्यता-यह पहला अवसर था जबकि देशी रियासतों के नरेशों से अपने प्रतिनिधि नामजद करने का अधिकार छीन लिया गया था। जनता को अपने प्रतिनिधि निर्वाचन करने का अधिकार दिया गया।

(5)संविधान सभा में केवल भारतीय प्रतिनिधियों को विधानसभा में केवल भारतीय प्रतिनिधियों के होने की व्यवस्था की गयी। लेशियन और ब्रिटिश हितों के प्रतिनिधिया का इसमें स्थान नहीं दिया गया।

(6)संविधान की सम्प्रभुता-भारतीयों के बिना किसी ब्रिटिश हस्तक्षेप में मत बनाने का अधिकार दिया गया। संविधान सभा को पूर्ण रूप से सम्ममत्वता प्रदान की गयी उस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं रखा








प्रश्न 6 मौर्यकालीन लोक कला पर टिप्पणी लिखिये।

उत्तर- मौर्यकाल की लोक कला का ज्ञान उन महाकाय यक्ष-यक्षी मूर्तियों द्वारा होता है जो मथुरा से पाटलिपुत्र, विदिशा, कलिंग और पश्चिम सूर्पारक तक पाई जाती हैं। इन यक्ष-यक्षियों की मूर्तियों की अपनी निजी शैली है, जिसका ठेठ रूप देखते ही अलग पहचाना जा सकता है। अतिमानवीय महाकाय मूर्तियाँ खुले आकाश के नीचे स्थापित की जाती थीं। इस संबंध में परखम ग्राम से प्राप्त यक्ष मूर्ति, पटना से प्राप्त यक्ष मूर्ति-जिस पर ओपदार चमक है और एक लेख भी है-पटना शहर में दीदारगंज से प्राप्त चामरग्राहिणी यक्षी-जिस पर भी मौर्य शैली की चमक है-और बेसनगर से प्राप्त यक्षी विशेष उल्लेखनीय हैं। ये मूर्तियाँ महाकाय हैं और मांसपेशियों की बलिष्ठता और दृढता उनमें जीवंत रूप में व्यक्त हुई है। वे पृथक् रूप स खड़ी हैं पर उनके दर्शन का प्रभाव सम्मुखीन है, मानों शिल्पी ने उन्हें सम्मुख दर्शन के लिए ही बनाया हो। उनका वेश है सिर पर पगडी, कंधों और भुजाओं पर उत्तरीय, नीचे धोती जो कटि में मेखला से कायबंधन से बँधी है। कानों में भारी कुडल, गले में कंठा, छाती पर तिकोना हार और बाहुओं पर अंगद है।

 प्रश्न 7. मथुरा कला की विशेषतायें बताइये।

उत्तर- मथुरा कला शैली का विषय बद्ध तथा अन्य भारतीय अभिव्यक्तियाँ से सम्बन्धित है। मथुरा कला विशुद्धत्तर भारतीय परम्परानुसार हा विकसित प्रेरणा तथा प्रौढ़ता का पुट है। इस काल शैली क में नैसर्गिक सौंदर्य, लोकोत्तर तथा आध्यात्मिक भावों की अभिव्यक्ति हाला शली में बनी हुई बुद्ध की मूर्तियों में उनके उन्मीलित नेत्र, भरे हुए गाल तथा माठा मुस्कान से भरे हुए होठों में बद्ध की भारतीय परम्परा के लक्षण है। मथुरा कला शली की कारीगरी में सादगी तथा सक्षमता का अदभुत चित्रण है। नीचे का एकाएक अग प्रत्यक्ष झलकता है। मथरा की कलाशैली ने आगामी भारतीय कला का प्ररणा तथा प्रौढ़ता प्रदान की है। मथरा कला शैली की उपरोक्त विशेषताओं से यह स्पष्ट हाता हाक यह कला विशुद्ध भारतीय कला की परम्परा के अनुसार है। बच्चाफर (Bachhofer) महोदय का कथन है कि अभिव्यंजना, विचार, अवधारणा तथा कलात्मक कौशल में मथुरा शैली शुद्धतः भारतीय है।

प्रश्न 8. मथुरा कला में बुद्ध मूर्तियों की क्या विशेषतायें पायी जाती हैं?

उत्तर- भारतीय कला में गढ़ी हुई बुद्ध की सबसे प्राचीन मूर्ति मथुरा में ही मिला था। सारनाथ की बुद्ध की मूर्ति, जो मानवाकार लम्बाई की हैं, मथुरा में कानष्क के राज्य के तृतीय वर्ष में बनाई गई थीं। इसमें बुद्ध धोती पहने हुए अभय मुद्रा में हैं। आकार और भार में यह मौर्यकालीन यक्ष मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं, परन्तु इसकी कारीगरी में सादगी और सूक्ष्मता का ऐसा मिश्रण है कि वस्त्र के नीचे शरीर का एक-एक अंग प्रत्यक्ष झलकता है। यहाँ पर यह बात याद रखने योग्य है कि बुद्ध की प्रतिमा पारदर्शी नहीं बनाई जाती थी। उनके बनाने में नैसर्गिक सौंदर्य

और लोकोत्तर तथा आध्यात्मिक शान्ति की अभिव्यंजना का ध्यान रखा जाता था। महात्मा बुद्ध की मूर्ति में देवत्व के 32 लक्षण उष्णीघ्र, अर्ण, चरणों में पद्म आदि की रचना करनी पड़ती थी। उसमें मुद्रा और चक्र बनाने पड़ते थे। मुद्राओं में अभय मुद्रा, धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा, भूमि स्पर्श मुद्रा अधिक लोकप्रिय थी। शरीर के अवयवों का निर्माण निश्चित अनुपात में किया जाता था।

मथुरा में चिन्तन मुद्रा में लीन तथा आसनारूढ़ भगवान बुद्ध की मूर्ति मिली है। इसी प्रकार की गांधार शैली की मूर्ति तथा इसमें दो भिन्नताएँ हैं-मथुरा के बुद्ध धोती पहने हैं, गांधार के बुद्ध सन्यासी वेष में हैं। गांधार के बुद्ध के सिर पर घुघराले बाल हैं और इनकी मुखाकृत में वास्तविक मानव शरीर विज्ञान का ध्यान रखा गया है। इसमें प्रभायुक्त उन्मेष है। मथुरा की बुद्ध मूर्तियों में भारतीय कला परम्परा से लक्षणयुक्त है जबकि गांधार शैली में विदेशीपन है।

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