Que 1.कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियों का वर्णन करें।
Ans-कुतुबुद्दीन ने 1206 में भारत में गुलाम वंश की स्थापना की। कुतुबुद्दीन को बचपन में ही एक व्यापारी के हाथ गुलाम के रूप में बेच दिया गया था। नीशापुर के काजी ने उसे खरीद लिया था। उसके गुणों तथा स्वभाव से प्रभावित होकर काजी ने उसकी शिक्षा-दीक्षा कराई। काजी ने अपने पुत्रों के साथ ही उसको धार्मिक और सैनिक प्रशिक्षण दिया परन्तु काजी के मरने के बाद उसका उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन को गजनी ले आया और उसे मुहम्मद गोरी के हाथ से बेच दिया।
कुतुबुद्दीन सर्वगुण सम्पन्न था। थोड़े ही दिनों में उसने अपने नये स्वामी को अपने गुणों से मुग्ध कर लिया और उसका विश्वासपात्र सेवक बन गया। उसके गुणों से प्रभावित होकर उसके स्वामी ने उसे ऐबक की उपाधि दे दी। ऐबक का अर्थ होता है-'चन्द्र-मुखी'।
वह अपने स्वामी के प्रति इतना भक्तिपरायण था कि उसके स्वामी ने उसे अपनी सेना का अधिकारी बना दिया। उसे अमीर-ए-अखूर (अस्तबलों) का अधिकारी भी नियुक्त किया गया। वह भारतीय अभियान पर भी गोरी के साथ आया। यहाँ भी उसने अपने स्वामी की प्रशंसनीय सेवा की जिससे खुश होकर गोरी ने उसे तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद भारतीय विजयों का प्रबंधक बना दिया। जब गोरी का देहान्त हुआ तो उसने स्वयं दिल्ली पर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया जो दिल्ली सल्तनत के नाम से भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है।
Que 2. इब्नबतूता ने भारतीय जीवन के बारे में क्या लिखा है?
Ans--इब्नबतूता ने भारत की विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों, आस्थाओं, पूजा स्थलों तथा राजनीतिक गतिविधियों के बारे में लिखा। इब्नबतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत रेहला नाम से प्रसिद्ध है। उसे जो कुछ विचित्र लगता था, उसका वह विशेष रूप से वर्णन करता था। उदाहरण के लिए उसने नारियल और पान का बहुत ही रोचक ढंग से वर्णन किया है। उसने भारत की शहरी संस्कृति तथा बाज़ारों की चहल-पहल पर भी प्रकाश डाला है। इब्नबतता के लिखने का दृष्टिकोण भी आलोचनात्मक था। इब्नबतूता ने 14वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन का बहुत ही व्यापक और | रोचक वर्णन किया है। उसने भारतीय संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं आदि के बारे में विस्तार से लिखा है।
Que3. वीर कुंवर सिंह का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
Ans-कुंवर सिंह बिहार के महत्वपूर्ण नेता थे। 80 वर्श की आयु में भी उन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी सराहनीय भूमिका निभाई। कुंवर सिंह के साहस तथा संगठन शक्ति की उसके शत्रु भी प्रशंसा करते थे। बिहार के सभी क्रांतिकारी संगठनों ने उन्हें पूर्ण सहयोग दिया। सैनिकों ने जब दानापुर में विद्रोह कर दिया तो उन्होंने कुंवर सिंह को ही अपना नेता चुना। वह रेवा, कालपी और बांदा में अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़े। कुंवर सिंह ने कानपुर में नाना साहिब की सहायता की। अप्रैल, 1858 में युद्ध करते हुए कुंवर सिंह की मृत्यु हो गई।
Que 4. चम्पारण सत्याग्रह के क्या कारण थे?
Ans-1917 ई. में बिहार के चम्पारण में किसानों ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरोध में आंदोलन कर दिया था। इस आंदोलन का कारण वह अनुबन्ध था, जिसके कारण किसानों को बंगाल मालिकों के हित में अपनी जमीन के एक निश्चित भाग (3/20) में नील की खेती करनी होती थी। इसे तीनकठिया पद्धति भी कहा जाता था। बिहार के किसान नेता राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर महात्मा गांधी चम्पारण पहुँचे। महात्मा गांधी के कड़े संघर्ष के कारण ब्रिटिश सरकार को तिनकठिया पद्धति की समाप्ति की घोषणा करनी पड़ी। यह गाँधीजी का भारत में प्रारम्भिक सत्याग्रह आंदोलन था।
Que 5. मुगलकाल में जमींदारों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
Ans-मुगल काल में कृषि संबंधों में ज़मीदार केंद्र बिंदु थे। निम्नलिखित बिंदुओं के तहत हम मुगल काल में जमींदारों की व्यवस्था का मूल्यांकन कर सकते के हैं
(1) मुगल काल में ज़मींदारों की आर्थिक स्थिति का आधार उनकी व्यक्तिगत ज़मीर थी, जिसे मिल्कियत कहते थे। मिल्कियत ज़मीन पर ज़मींदार के निजी प्रयोग के लिए खेती होती थी। इन ज़मीनों पर प्रायः दिहाड़ी के मज़दूर अथवा पराधीन मज़दूर काम करते थे।
(2) समाज में ऊँची स्थिति के कारण जमींदारों को कुछ विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ मिली हुई थीं।
(3) समाज में ज़मींदारों की उच्च स्थिति के दो कारण थे। उनकी जाति तथा उनके द्वारा राज्य को दी जाने वाली विशेष सेवाएँ।
(4) ज़मींदारों को अधिकार था कि वह राज्य की ओर से कर वसूल करते थे।
(5) मुगल भारत में ज़मींदारों की कमाई का स्रोत तो कृषि था, परंतु वे कृषि उत्पादन में प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं करते थे। वे अपनी ज़मीन के मालिक होते थे। __(6) ज़मींदार अपनी ज़मीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे या उन्हें गिरवी रख सकते थे।
(7) सैनिक संसाधन ज़मींदारों की शक्ति का एक अन्य साधन था। अधिकांश जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी थीं जिसमें घडसवारों, तोपखाने और पैदल सिपाहियों के जत्थे शामिल थे।
उपरोक्त बिंदुओं के तहत हम देखते हैं कि मुगलकाल में जमींदार और जनता के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी थे। उन्होंने कृषि योग्य ज़मीनों को बसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही खेतिहरों की खेती के उपकरण तथा धन उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में सहायता की। ज़मींदारी की खरीद-बेच से गाँवों के मौद्रिक की प्रक्रिया में तेजी आई। लेकिन इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि ज़मींदार एक शोषक वर्ग था। किसानों से उनके रिश्ते पारस्परिकता, पैतृकवाद तथा संरक्षण पर आधारित थे। इसलिए राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने पर उन्हें किसानों का समर्थन प्राप्त होता था।

0 Comments